About the book
आदि शंकराचार्य ऐसी परम विभूति हैं जो वेदांत मार्तण्ड भी हैं, प्रकाण्ड ज्ञानी भी हैं, एक भक्त भी हैं और एक योगी भी हैं। इनके द्वारा रचित ग्रंथ मिथ्या से तादात्म्य हो चुके जीवन को आत्मसाक्षात्कार के महानतम लक्ष्य तक पहुँचाने में एक सेतु का कार्य करते हैं। वेदांत के मूल ग्रंथों का अध्ययन आरंभ करने की पूर्व तैयारी के रूप में भगवत्पाद शंकराचार्य ने कुछ प्रकरण ग्रंथ भी लिखे हैं। इन प्रकरण ग्रंथों में ‘आत्मबोध’ एक ऐसा ही ज्ञानप्रदायी ग्रंथ है, जिसके द्वारा सच्चा साधक अपनी आध्यात्मिक यात्रा को सहजरूप से तय कर सकता है। इस ग्रंथ में शंकराचार्य जी ऐसे लक्ष्य की ओर संकेत कर रहे हैं, जो हमारे साधारण अनुभवों से परे है। जिस प्रकार अंधकार से आच्छादित मार्ग पर चलना कठिन है, उसी प्रकार एक जीवित व जागृत सद्गुरु द्वारा पथ-प्रदर्शन के अभाव में अध्यात्म के मार्ग पर चलना असंभव है। सद्गुरु के बिना अत्यंत गुह्य होने के कारण वेदांत के सूत्रों का स्पष्टीकरण करना निष्फल होता है। अधूरा ज्ञान व्यक्ति को मिथ्याजाल और भ्रांतियों के गर्त में धकेल सकता है। बड़े भाग्यशाली होते हैं वे जो इस विवेक को जागृत कर पाते हैं कि इस आधुनिक संसार की लोलुपता, भीतर की रिक्तता को कभी आप आपूरित नहीं कर सकती। मानव की इस आकुलता का एकमात्र उपाय है- सत्य की खोज। क्या मृत्यु का अर्थ पूर्णविराम है? इस जीवन का उद्देश्य क्या है? ईश्वर कौन हैं? मैं कौन हूँ? धन्य हैं वे लोग जिनके अंतर्मन को ऐसे प्रश्न कचोटते रहते हैं, क्योंकि इसी सत्य की पिपासा से संभव होता है आत्मबोध की पराकाष्ठा तक पहुँच पाना। इस ग्रंथ ‘आत्मबोध’ में सरल व अर्थपूर्ण उपमाओं से सुसज्जित अद्वैत वेदांत के 68 श्लोकों को परम पूज्या आनन्दमूर्ति गुरुमाँ द्वारा सारगर्भित रूप से प्रस्तुत किया गया है। पूज्या गुरुमाँ स्वानुभूति से प्रकाशित श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु हैं, जो अपनी आत्मज्योति के प्रकाश से अध्यात्म पथ पर सबका मार्ग प्रशस्त करते हैं। यह पुस्तक आदि शंकराचार्य द्वारा विरचित ग्रंथ ‘आत्मबोध’ पर ज्ञानार्णव आनन्दमूर्ति गुरुमाँ द्वारा की गई एक सरलतम व बोधगम्य विवेचना है। जो अपने वास्तविक स्वरूप के खोजी हैं, यह पुस्तक उन सबके लिए एक वरदान है।