ओ कायागढ़ के वासी
इस काया को मैं मैं क्यों बोले ?
तू चेतन अज अविनाशी,
इस काया को मैं मैं क्यों बोले ?
1. ये हाड़ मांस की काया है,
पल में ढल जाने वाली है,
तू अजर अमर सुखराशि है।
इस काया को मैं मैं क्यों बोले ?
2. तू शुद्ध सच्चिदानंद रूपा,
इस जड़ काया से न्यारा,
ये काया दुःखद विनाशी।
इस काया को मैं मैं क्यों बोले ?
3. पृथी जल पावक पवन गगन से,
काया सबसे जड़ भई,
तू काट मोह की फांसी।
इस काया को मैं मैं क्यों बोले ?
4. कहे भिक्षु सोच समझ प्यारे,
तुम निज स्वरूप का ज्ञान करो ,
फिर मुक्ति बने तेरी दासी।
इस काया को मैं मैं न बोले।