कृष्ण ने कैसी होरी मचाई अचरज लखियो न जाई असत सतकर दिखलाई ।। टेक ॥ एक...
मैं तो गुरु अपनेसे होरी खेलुं मन धार री ॥ टेक ॥ प्रेमभाव का रंग बनावु...
होरी कुञ्ज गलिन में खेलत नंद कुमार री ॥ टेक ॥ मोरमुकुट सिर ऊपर सोहे गल...
देख सखी जगदीश्वरी कैसी होरी रचाई ॥ टेक ॥ पृथिवी रंगभूमि सुखदायक गगन कनात लगाई वृक्ष...
आयो बसंत सखीरी मिल खेलिये होरी ॥ टेक ॥ परके भूल गई गृह काजन मन में...
शाम के संग खेलो होरी जन्म सफल कर लो री सखी मिल आज चलो री ॥...
चरखा कात सुधार री सुन चतुर सियानी ॥ टेक ॥ यह चरखा लकडी का तेरा किसके...
यह संसार असार री काहे प्रीत लगावे ॥ टेक ॥ जिससे प्रीत करे तुं प्यारी कोई...
जगदीश दयानिधि भवभय दूर निवारोजी ॥ टेक ॥ जन्म मरण भव चक्कर मांही फिरत फिरत अब...
अब जाग मुसाफिर नींद न करो पियारी रे ॥ टेक ॥ घडिघड़ि पलपल छिनछिन करके रैन...
नाम निरंजन गावो रे सब छोड भरमणा ॥ टेक ॥ नाम निरंजन सब दुखभंजन नही मन...
दीनानाथ रमापति भवदुख हमारा हरो रे ॥ टेक ॥ करमें चक्रसुदर्शन पकडो शीश किरीट धरो रे...