नरहरि चंचल है मति मेरी कैसे भक्ति करूँ मैं तेरी। तू मोहे देखेहौं मैं तोहे देखूँ...
दर्शन दीजै राम दर्शन दीजै विलम्ब न कीजै। दर्शन तोरा जीवन मोरा बिन दर्शन क्यों जीवे...
एक बूँद स्यों बुझ गयी जनमजनम की प्यास। प्रेम पंथ की पालकी रविदास बैठिया सांचे सांची...
अब कैसे छूटे रे नाम रट लागी। प्रभु जी तुम घन बन हम मोरा जैसे चितवत...