जोगिया मेरे घर आये।
कानन कुण्डल गले मृग सोहत अंग विभूति लगाए।
भीतर बाहर मौन जोगी अन्तर ओम जगाए।।
वन में अकेले ही रमता जोगी, नाम की लगन लगाए।।
गुरु सों ऐसी जुगत पछानी, आत्म पदवी पाए।।
छोड़ के जग की प्रीत पुरानी, राम से नेह लगाए।।
भगवा चोला तन पे साजे, मन भी रंगा जाए।।
श्वासों की माला पे जपता जोगी, गुरु सो लगन लगाए।।
ऐसी भिक्षा दे जा जोगी, प्रीत जोगन बन जाए।।
गुरु माँ
Jogaiyaa mere ghar aaye.
Kaann kundl gale mriga soht anga vibhuti lgaaye.
Bhitr baahr maun jogai antr om jgaaye..
Van mein akele hi ramtaa jogi, naam ki lgan lgaaye..
Guru son aisi jugat pchhaani, aatm padvi paye..
Chhode ke jga ki prit puraani, raam se neh lgaaye..
Bhagvaa cholaa tan pe saaje, mn bhi rngaaa jaye..
Shvaason ki maalaa pe jptaa jogai, guru so lgan lgaaye..
Aisi bhikshaa de jaa jogi, prit jogan bn jaae..
Guru maa