अवधू अक्षर से वो न्यारा ॥ टेक
जो तुम पवना गगन चढ़ावो, करो गुफा में वासा ।
गगना पवना दोनों बिनसे, कहँ गयो जोग तमाशा ॥ १
गगना मध्ये ज्योति झलके, पानी मध्ये तारा ।
घटि गये नीर विनशि गये तारा, निकरि गयो केहि द्वारा ॥ २
मेरुदण्ड पर डालि दुलेची, जोगिन तारी लाया ।
सोई सुमेर पर खाक उड़ानी, कच्चा जोग कमाया ॥ ३
इंगला बिनसे पिंगला बिनसे, बिनसे सुखमनि नाड़ी ।
जब उन्मुनि की तारी टूटे, तब कहँ रही तुम्हारी ॥ ४
अद्वैत वैराग कठिन है भाई, अटके मुनिवर जोगी।
अक्षर लौं की गम्म बतावै, सो है मुक्ति बिरोगी ॥ ५
कह अरु अकह दोउ ते न्यारा, सत असत्य के पारा ।
कहैं कबीर ताहि लख जोगी, उतरि जाव भवपारा ॥ ६
Avadhoo akshar se vo nyara ॥ Tek
Jo tum pavana gagan chadavo, karo gufa mein vasa .
Gagana pavana donon binase, kahan gayo jog tamasha ॥ 1
Gagana madhye jyoti jhalake, pani madhye tara .
Ghati gaye neer vinashi gaye tara, nikari gayo kehi dvara ॥ 2
Merudand par daali dulechi, jogin tari laya .
Soee sumer par khaak udani, kachcha jog kamaya ॥ 3
Ingala binase pingala binase, binase sukhamani nadi .
Jab unmuni ki tari Toote, tab kahan rahi tumhari ॥ 4
Advait vairaag kathin hai bhai, atake munivar jogi.
Akshar laun ki gamm batavei, so hai mukti birogi ॥ 5
Kah aru akah dou te nyara, sat asatya ke para .
Kahein kabir taahi lakh jogi, utari jaav bhavapara ॥ 6