About the book
सम्पूर्ण जीवन का सार वेदान्त में निहित है। और सम्पूर्ण वेदान्त का सार स्वामी सदानन्द सरस्वती द्वारा विरचित इस विलक्षण ग्रंथ ‘वेदान्त सार’ में अति सुन्दरता से प्रतिपादित किया गया है। कई शताब्दियों पूर्व लिखित, अद्वैत वेदान्त का गुणानुवाद करता यह महान ग्रंथ, आज भी उत्तम जिज्ञासुओं को वर्णनातीत ब्रह्मज्ञान का बोध करने हेतु प्रेरित कर रहा है। अज्ञान के बन्धनों से मुक्त करा, परम सत्य की प्राप्ति हेतु मार्गदर्शन प्रदान कर रहा है। किन्तु एक जीवन्त श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ गुरु के अभाव में, इन सागर रूपी ग्रंथों से ज्ञान के वास्तविक अर्थों को उद्धृत करना सम्भव कहाँ? स्वयं सम्बुद्ध गुरु ही सकुशलता से इस क्लिष्ट ज्ञान का सार, सोदाहरण व सरल शब्दों में प्रतिपादित कर सकते हैं। यह ज्ञाननिष्ठ गुरु की कृपा ही होती है कि ज्ञान की जटिलताएँ और गूढ़ताएँ भी बोधगम्य हो जाती हैं। आनन्दमूर्ति गुरुमाँ ने स्वयं अद्वैत वेदान्त की श्रेष्ठतम ऊँचाइयों को छुआ है और साधकों को ज्ञान की उस परम अवस्था तक पहुँचाने में अति सक्षम हैं। ‘वेदान्त सार’ ग्रंथ पर दिए गए उनके व्याख्यान उनकी बौद्धिक प्रतिभा, अगाध वाक्पटुता, तर्कपूर्णता से परिपूर्ण हैं, जो आधुनिक मानव को इस सनातन ज्ञान की ओर प्रेरित करते हैं। इस विलक्षण पुस्तक में वेदान्त ज्ञान के अधिकारी, अध्यारोप-अपवाद, समस्त आरोप व उपाधियों का निवारण आदि की मंजुल प्रक्रियाओं का अति सूक्ष्म निरूपण किया है। अतैव इस पुस्तक रूपी गागर में वेदान्त का सागर समाहित है। सम्पूर्ण वेदान्त के इस सार का रसास्वादन करने हेतु परम पूज्या गुरुमाँ द्वारा बोधगम्य शब्दों में प्रतिपादित इस महानतम ग्रंथ को आत्मसात करें।